खोई हुई चाबी

स्कूटर की चाबी के लिए जैसे ही थैले में हाथ डाला चाबी नहीं मिली। “अरे कहाँ गयी ?” साथ ही तो ले गया था। ” एक बार फिर थैले को टंटोला। पर खाली हाथ।
अधीरता बढ़ती गयी। “कहाँ जा सकती है ?” दिमाग पर जोर डाला। “यहाँ से सीधा कपडे वाली दुकान ही तो गया था और वहीँ से वापस चला आ रहा हूँ। किसी और जगह तो गया ही नहीं। कहीं दुकान में तो नहीं छूट गयी ? ” विचार के साथ ही बिजली की गति से पुनः उसी दुकान की तरफ भागा।
लगभग हाँफते हुए पहुँचने पर दुकानदार ने पूछा ” क्या हुआ भाईसाहब ? क्या कपड़े पसंद नहीं आए ?” नहीं, नहीं मेरे स्कूटर की चाबी शायद यहीं कहीं गिर गयी है ” अच्छा ,अभी ढूंढते हैं। ” इतना कहने के साथ दुकानदार ने जो चाबी खोज अभियान शुरू किया वह अंतहीन हो गया। । चाबी कहीं ना मिली।
उसने बीच बीच में कई बार मुझे अपनी याददाश्त पर जोर डालने के लिए कहा ” भाईसाहब आप किसी और जगह भूल आये होंगे। ” पर मेरी खीझ बढ़ती ही जा रही थी। ” अरे भैया मैं और कहीं गया ही नहीं। स्कूटर खड़ा कर सीधे यहीं आया था। आपके ही किसी कर्मचारी ने ऐसी ओछी हरकत की है और परेशान मुझे होना पड़ रहा है। ” मैंने लगभग गुस्से में बिलबिलाते हुए कहा।
दुकानदार ने मुझे समझाने की गरज़ से कहा ” भाईसाहब ये सब मेरे परखें हुए है और ये ऐसी हरक़त नहीं कर सकते , मैं दावे के साथ कह सकता हूँ। ” “आप इन कर्मचारियों पर झूठा गुमान कर रहे हो , मैं अभी पुलिस थाने जाता हूँ फिर आपके दावे की पोल खुल जाएगी। इन्ही में से निकलेगा कोई चोर। ”
दनदनाते हुए निकल मैं पुलिस बुला लाया। शाम बहुत गहरा गयी थी। पुलिस को पूछताछ करता छोड़ मैं जैसी तैसे घर पहुंचा।
“थाने में जब रात बिताएंगे तब नानी याद आ जाएगी , तभी कुछ उगलेंगे ” सोचते सोचते कपडे बदलने लगा। तभी टन की आवाज़ के साथ कुछ गिरा। मैंने अपना सिर पीट लिया ” ओह यह आज क्या किया? मैंने कितने निर्दोष लोगो को फंसा डाला ?”
चाबी मेरे ही कपड़ो में अटक गयी थी।