मासूम

सुबह ऑफिस जाते वक़्त जब कभी रास्ते में वह मिलता तो साइकिल चलाना छोड़ इधर उधर गाड़ियों की आवाजाही को नियंत्रित कर मेरी गाडी के लिए जगह बनाता। शाम को मेरे वापस लौटने पर खेल छोड़, हाथ जोड़कर अपनी मासूम सी मुस्कराहट के साथ मेरा अभिवादन करता। यह उसका लगभग नित्यक्रम था। और हमारी जान पहचान के लिए यह काफी था। पड़ोस में नया परिवार आया था शायद।
उस दिन शाम को वह हर उस राहगीर को नमस्ते कर रहा था जो उसके सामने से गुजर रहा था। अगर वह किसी विमान में परिचारक होता तो उसकी इस मुद्रा से हर कोई खुश हो रहा होता , किन्तु यहाँ परिदृश्य दूसरा था। लोग उसका मज़ाक उड़ा रहे थे। और वह भोला बालक उसे समझ नहीं पा रहा था।
छुट्टी वाले दिन टहलते टहलते पास के बगीचे में पहुंची तो देखा वह एक किनारे खड़ा अकेला ही सुबक रहा था। पूछने पर पता चला अन्य बच्चों के घरवालों ने उसके साथ खेलने से मना किया है और वे उसे “पागल ” कह कर चिड़ा रहे हैं। दिल पसीज गया। समाज में आटे में नमक और नमक में आटे के जुमले के सहारे हर व्यवहार , दुर्व्यवहार , भ्र्ष्टाचार तो स्वीकार्य है किन्तु प्रकृति प्रदत्त खामी -खूबी नहीं।
उस दिन के बाद वह नहीं दिखा। अपने गांव लौट गया था शायद।