युद्ध

मनुष्य की रफ़्तार से
मिला न सकी कदम ताल
वेग था प्रबल प्रचंड
पिछड़ गयी सभ्यता
शेष था पशुत्व अभी
हिंसक स्वभाव से ना मुक्त हुआ
जीत के तिलिस्म में
विजेता लाशों का बनता रहा