दिवस

दिवस की नहीं दरक़ार
इंसां केवल समझो तो
पांत अलग़ की नहीं गरज़
गरिमा कतार को बख्शो तो
नापें रास्ते जिंदगी के
बंधन ढीले छोड़ो तो
पूर्वाग्रह का चश्मा उतार
क्षमताओं को परखो तो
हटा तमगा दोयम का
दर्जा बराबरी का नवाजो तो