है गति यही सरल की कटता सीधे पेड़ समान नाकाफ़ी तेरा काबिल होना बिना हुए चतुर सुजान वज़ूद तुम्हारा अब भी होता छोड़ कर्तव्य बघारा होता नहीं दरकार बाहूबल की रसूख अपना दिखलाया होता आज तुम थी कल होगा कोई और नहीं मिलेगा सरल को यहाँ कोई ठौर
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