राज्य के सुदूर पश्चिम से पूर्वी इलाके में यात्रा -अच्छा लग रहा था।नए चेहरे, भिन्न पहनावा, अलग वनस्पति। चलती बस में बैठा यात्री यही सब नोट करता रहता है। अचानक सड़क किनारे बोर्ड पर “हलैना” लिखा दिखा। एक वृद्ध अम्मा याद आ गयी। मैं आश्चर्यचकित हो सोचने लगी ” वह इतनी दूर से हमारे शहर मजदूरी करने आयी थी ? और इस 500 किलोमीटर लम्बे रास्ते में उसे कहीं काम नहीं मिला? ” वह बोर्ड मुझे एक दशक पीछे ले गया। तब घर के सामने पौधों की नर्सरी में एक वृद्ध दम्पति काम करने आये थे। वृद्ध बाबा पौधों की देखभाल कर लेता और अम्मा आसपास के घरों में छोटे मोटे काम में सहायता कर देती। किसी के यहाँ गेहूं साफ़ कर देती किसी के यहाँ मसाले पीस देती। उसकी अलग बोली हमे बड़ी रोचक लगती। हालांकि पूरी तरह से समझ नहीं पाते पर दोनों का काम चल जाता था। चार बजे दूर से कहीं अज़ान सुनाई देने पर कहती ” बेटी अल्लो बोल रियो है , तेरे बाबे के चाय को टैम हो गयो ” और कहकर हाथ के काम को उसी क्षण छोड़कर रवाना हो जाती। अम्मा बाबा का बड़ा ख्याल रखती थी। खाने पीने की किसी भी चीज़ में पहले बाबा का हिस्सा अलग रखती , फिर खुद लेती। “तेरे बाबे को पसंद है ,थोरी उसके लिए। ” दुबली पतली सी थी और खूब फुर्तीली। एक दिन काम करते करते उसकी पीठ में दर्द उठा। मैं भागकर दवा लायी और उसकी पीठ में लगाने लगी और देखा की वहां नील के निशान थे। “अम्मा यहाँ चोट कैसे लगी ? कहीं गिर पड़ी थी क्या।?” “नहीं ” तो फिर ?” ” कल देर हो गयी और तेरे बाबे को गुस्सो आ गयो ” ” बाबे ने तुझे मारा ?” ” हाँ बेटी। तेरे बाबे को गुस्सो भोत आत है ” ” बड़ी अजीब हो अम्मा तू फ़िर भी हर अच्छी चीज़ बाबे के लिए रखती हो ?” कुछ नहीं बोली वह। मैं घंटो सोचती रही।