Loud only

एक परिचित ने देश विदेश भ्रमण पश्चात हॉर्न नहीं बजाने का प्रण लिया। अमल में कितना ला पाए नहीं पता किन्तु किस्सा याद आने पर नाहक़ ही हॉर्न बजाने को उत्सुक मेरे हाथ अवश्य रुक जाते हैं। राह चलते गौर करने पर लगा कि हॉर्न का तेज़ या धीमा स्वर उसे बजाने वाले की मनःस्थिति को व्यक्त करता है। चिंघाड़ते हुए बजाने वाला तो जैसे रौंद कर ही आगे निकल जाना चाहता है।
अस्पताल के आस पास चिंघाड़ते हॉर्न को फ़ोन पर ही सुनकर बात करने वाले को विश्वास नहीं हुआ। बेइंतहा शोर को सुनकर वो शख़्स अचम्भे में पड़ गए । उन्हे लगा मैं किसी मेले में हूँ। पुनः पुख़्ता करने की ग़रज़ से पूछा क्या वाकई आप अस्पताल में है ? ? अस्पताल तो नो हॉन्किंग जोन माना जाता है ना !!
एक अन्य रोज़ हमारे बात बेबात हॉर्न बजाने की आदत पर एक परदेसी को बहुत आश्चर्य हुआ – is there anything serious? मैंने कहा “nothing serious.हमारा जब मन करता है तभी बजा लेते हैं चाहे जरूरत हो या ना हो । और यह भी हो सकता है जहाँ जरूरत हो वहां हम ना भी बजाएं। ऐसे ही हवा की गति से निकल जाएँ बिना कोई आव -ताव देखे। मानो या ना मानो यह ध्वनि प्रदूषण संतुलन का एक तरीका है। और तो और हमारे लिए हॉर्न मात्र हॉर्न ही नहीं है वह एक multi-tasking device भी है जिसे हम वाद्य यंत्र की तरह बजा बजा कर नयी स्वर लहरी भी इज़ाद कर लेते हैं। ” मेरे उत्तर के बाद उसकी दुविधा और गहरी होती नज़र आयी।
देखा जाए तो हम सामान्यतः हल्ला पसंद लोग हैं। हर जगह हल्ला चाहिए। चाहे गाडी ही क्यों न चला रहे हों। हमारा उल्लास तब तक परवान नहीं चढ़ता जब तक आवाज़ कानफोड़ू नहीं हो फिर वह कीर्तन की हो या हॉर्न की । हॉर्न तो फ़िर राह चलते का काम है जहाँ कोई धणी धोरी नहीं होता. देखते ही देखते अब तो सब कबाड़ी , झाड़ू, सब्जी बेचने वालों ने – अपनी ध्वनियों को लाउड स्पीकर के सहारे नयी ऊंचाई पर पहुँचाना शुरू कर दिया है । उधर DJ वाले भी सड़क पर आ गए हैं।
कबीरदास जी हो या कोर्ट -कह कह कर थक गए कि ध्यान और ऊर्ज़ा शोर में लगाओगे तो अराधना कैसे करोगे ,काम कैसे करोगे। किन्तु हमारे कानों पर अभी जूँ रेंगना बाक़ी है।