कमरे में चाय का प्याला हाथ में लिए सोच रही थी -जिंदगी भर कितनी दौड़ धूप रही है । अभी भी सब कुछ अविश्वसनीय लगता है। खुद को चिकोटी काट कर अहसास दिलाना पड़ता है कि अब वह सुकून से है। माँ भीतर गहरे सोई हुई है। ठन्डे कमरे में उसे आराम से नींद आ जाती है।
उस दिन जर्मन भाषा की class में बहुत बुरा लगा था। Teacher ने सभी learners से पूछा था – “एक जर्मन household activities में 3 -4 घंटे देता है। आप क्या सोचते हैं। क्या यह कम है या ज्यादा है?” प्रश्न तो साधारण था। सभी को Deutsch में ही बोल कर बताना था। पर मुझे चोट गहरे लगी और बात घर कर गयी।
“यह तो बहुत कम है।” बोल तो गयी पर फिर अगले वाक़्य के साथ ही सोच में डूब पड़ी -“हमारे यहाँ तो 8 -10 घंटे सामान्य बात है” और छुपा गयी कि अगर माँ की सोचूं तो मुँह अँधेरे से देर रात तक, जब तक वह थक कर गिरने को नहीं हो जाती ,इतने घंटे। कलेजा मुँह को आ गया। पहली बार बैठ कर सोचा कितना काम लेते हैं माँ से। विकल्प का तो कभी सोचा ही नहीं और वो भी चुपचाप लगी रहती है कोल्हू के बैल की तरह।
मैं अपने ही विचारों में थी कि teacher के ठहाके मुझे बाहर लाये। वह बहुत हंसा मुझ पर और बोला वह तो इन सब में आधा घंटा भी बर्बाद नहीं करता। First world nations के लिए यह सामान्य बात हो सकती है जहाँ तकनीक उनके कामों में हाथ बंटा रही है पर हमारे देश में…