जारी थी तकरार
धूप और सर्द हवा की
नश्तर सी चुभती हवा कभी
कभी सहलाती धूप भी
शाम थी गुनगुनी
सर्दी फिर शिखर चढ़ी
पर कॉफ़ी और रिश्तों की
गर्माहट का पलड़ा भारी था ।
जारी थी कोशिश
ज़िंदगी के सुर सजाने की
जिजीविषा कभी और
कभी ज़िंदगी हावी
सर्द , सुर और खुला आसमान
अद्भुत त्रय और आह्लादित मन
अहसास थे जैसे दावत पर
मौज का पलड़ा भारी था।