रेलगाथा

रेल तो रेल है।  अनगिनत अनुभवों की रेल। कभी एक सीरियल देखा  था रेल यात्रा पर। और कुछ तो याद नहीं रहा पर रेल ज़ेहन में बैठ गयी। शुक्र है इंटरनेट का। खोजने पर सब कुछ मिल जाता है  बस याद भर बाकी होनी चाहिए। मिला। वह सीरियल भी। श्याम बेनेगल का “यात्रा”।  जब प्रथम बार रेल की यात्रा की तो बताया गया था कि रेल मंज़िल से कई किलोमीटर दूर छोड़ेगी पर तब भी यह मंज़ूर था क्योंकि यात्रा जो रेल से ही करनी थी। 

बाबूजी बताते हैं कि  बचपन में वह अपने ननिहाल सिर्फ रेलगाड़ी का धुआं देखने के लिए आते थे क्योंकि तब उनके गांव में रेल  नहीं थी और ननिहाल के पास से निकलती थी।

एक मित्र अनुसार उसने पंजाबी भाषा ही रेल यात्रा के दौरान सीखी थी।  बचपन में हर वर्ष  नानी के यहाँ पंजाब जाते वक़्त ट्रैक के किनारे हिंदी , अंग्रेजी , पंजाबी में लिखे विज्ञापनों को पढ़ सकने की बहन भाईओं से प्रतिस्पर्धा ने ही ये कमाल करा डाला।

मुंबई की लोकल – उसकी जीवन रेखा ।  सुना है यात्री उसमे धक्के से ही घुसकर धक्के के साथ ही निकल जाता है ,    को छोड़कर शायद यात्रा के समस्त साधनों में रेल सबसे ऱोचक और आरामदायक साधन है- घर के कमरे में पहिये लगा देने समान। फिर अपने कमरे में बैठे बैठे ही खेत , खलिहान , दूसरा शहर , अनजाने लोग , नयी संस्कृति  और गरम चाय सब कुछ।

मेट्रो कहे या आधुनिक रेल। तकनीक ने उसे रफ़्तार दी है,  सक्षम बनाया है। समुद्र को चीर कर कहीं उसके हृदयस्थल पर यात्रा कराती कहीं  गहरी गुफा नुमा सुरंगो में से पार कराती आधुनिक रेल।

कुछ और रूप भी। उन्हें रेल के एडवेंचर फॉर्म कहा जा सकता है -रोपवे और रोलर कोस्टर ।

रोपवे तो प्लेटफॉर्म छोड़ते वक़्त एक रूहानी अहसास दिलाती है -सब चीज़ों से ऊपर उठे हुए , बेहद हलके फुल्के। चहुँओर प्रकृति ही प्रकृति – कंदराएँ ,घाटियाँ , पत्थर , समुद्र अनंत आकाश तक।

रोलर कोस्टर को हल्का फुल्का साधन नहीं करार दिया जा सकता। एक tagline कहीं से याद आ रही है “tough people to go with it ” सचमुच बड़ा जिग़र रखने वालों के लिए है रोलर कोस्टर राइड । अनजाने में तो ये एडवेंचर ही सिद्ध होती है। कलेजा मुँह को आ गया। जीवन बीमा वालो की Adline  की तर्ज़ पर   प्रण किया  -” जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी ”  बस यही और आख़िरी बार।

जीवन की रेलमपेल में यात्राओं का अनुभव जारी रहेगा।