मानुष

मानुष मैं हूँ दुराधर्ष

जीवन मेरा सतत संघर्ष

सहे  काल प्रहार निरंतर

हुआ क्षत विक्षत अनंतर

सुनामी महामारी मंदी युद्ध

अजेय नहीं कोई विपद

अक्षय अविचल मेरा आत्मबल

पाया विस्तृत विलक्षण मेधाबल

गिर गिर सीखा बढ़ा उत्तरोत्तर

इतिहास मेरा कह रहा फिर फिर

अंत मेरा है नहीं अभी

गुज़र जायेगा यह मंजर भी