मैं सत्तर जमा पांच का
सोचता विचारता
हीरक जयंत या हारा हुआ
द्वन्द्व निरंतर सालता
आदि बीज था मूल्यों का
ध्येय मेरा अदल जीवन
राह लम्बी थी कष्ट भरी
थपेड़ो ने हिला दिया
पूत मेरे सम्भावना भरे
स्वछंदता की राह चले
कुछ हुआ बहुत है बाकी
आज़ादी है अभी अधूरी
मैं सत्तर जमा पांच का
सोचता विचारता
हीरक जयंत या हारा हुआ
द्वन्द्व निरंतर सालता