वीर

देख खुद को उस ताबुत में
हूँ अभिभूत ऐसे गमन से
अश्रुधारा हर कोई पाता
गर्व कब हिस्से में आता
किया कूच जीत दिलों को
था वह कोई सम्राट लोक का
हुआ समर्पित कर्मभूमि को
रणबांकुरा रणक्षेत्र का
दे भव को सर्वोत्तम अपना
माटी से वह उऋण हुआ
परम सत्य है जग से जाना
आना उसका सार्थक हुआ