पहली जनवरी को कसम नयी अब नहीं नहीं कि संस्कृति पश्चिमी तारीख़ विदेशी या फिर पाबंदियां भारी बल्कि मैं उतरता गया इतने तरतीब से स्वयं में कि खुद में सिमट गया और सारा बाहर बेमानी हो गया तलब उठी उसे तोड़ने की और फिर से बेतरतीब हो जाने की
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