कुछ ग़लत हुआ

कुछ ग़लत हुआ

स्वयं मैं में अटक गया

और हम बनने से चूक गया

कुछ ग़लत हुआ

लाभ श्लाघ के चश्मे चढ़ाए

ज़मीनी यथार्थ धुंधला गया

कुछ ग़लत हुआ

दंगल तमाशा सिरमौर बने

श्रम ठगा सा रह गया

कुछ ग़लत हुआ

गण का जब क्रम आया

‘अकेला चना ‘ चरितार्थ हुआ

कुछ ग़लत हुआ

अगण्य सुराख़ों की क़तार से

तंत्र सर्वत्र दरक गया

कुछ ग़लत हुआ