अंतर्मुखी

खेल के मैदान में प्रवेश के साथ ही ध्यान बारम्बार बाद में होने वाले कार्यक्रम की तरफ जा रहा था। मैच खेला भी और जीता भी किन्तु दिमाग चिंतामुक्त न हुआ। सोचने बैठ गयी। इस स्थिति का सामना कोई पहली बार नहीं कर रही थी। उस दिन भी दर्शको को सम्बोधित करने के लिए जैसे ही उठने का प्रयास किया  कि पीठ में जोरदार टीस उठी। मैं वही की वहीँ रह गयी। उपस्थित में से किसी ने यह कहकर उपहास उड़ाया कि यह क्या ज्ञान साझा करेगी , इन्हे तो खुद ज्ञान की जरूरत है। मेरी रुलाई फूट पड़ी। लोग मेरी स्थिति ना समझ सके। वे दया के पात्र थे या मैं … समझ ना आया। बहरहाल अस्पताल पहुंचाई गयी। डॉक्टर ने परीक्षण कर साइकोलॉजिकल nervousness बताया  जिसमे व्यक्ति इतना तनावग्रस्त हो जाता है कि  उसका स्नायु तंत्र ही लड़खड़ा जाता है।

हालांकि घबराहट की शुरुआत तभी हो गयी थी जब सुना कि मैच के विजेता को दर्शकों को सम्बोधित करना पड़ेगा । खेल पर पकड़ होना अलग बात है और मंच से लोगों को सम्बोधित करना अलग । आयोजकों को मैंने समझाना चाहा पर वो शायद इसे समझ न सके। इसे बस इस तरह लिया जाता है जैसे गीले कपडे में से पानी झटकना हो , और लीजिये आप अपनी झिझक झटककर बन गए बहिर्मुखी। मालूम हो एक अंतर्मुखी को बहिर्मुखी बनने की प्रक्रिया में खुद से जूझना पड़ता है। मन ही मन में इतना संवाद हो जाता है कि बाह्य रूप से इसकी कोई आवश्यकता मह्सूस नहीं होती। इसे संवादहीनता के बजाय आत्मसंवाद कहे तो उपयुक्त रहेगा।

इस प्रतियोगिता हेतु आवेदन करने के बाद कई दिनों तक खेल के साथ दर्शकों को सम्बोधित करने का अभ्यास भी  शीशे के सामने खड़े रह कर किया। पर ढाक के वही तीन पात। तनाव में कोई कमी नहीं। सोचती रही हम  जिंदगी भर उस क्षेत्र में जद्दोजहद करते हैं जो हमारी प्रकृति नहीं हैं सारी ऊर्जा उसे प्राप्त करने में लगा देते हैं बजाय उसके जो हम स्वभावतः हैं उसमे और अच्छा ,उत्कृष्ट करने के।

लोगो से मुखातिब होने में , भीड़भाड़ वाले माहौल में मेरा ताना बाना हिल जाता है चाहे सब कुछ सम्मानस्वरूप ही क्यों ना हो ।  यह उतना ही अज़ीब है जितना किसी चंचल व्यक्ति को एक जगह टिक कर बैठने को कह दिया जाये। जैसा कि लॉक डाउन में हुआ। लोग तड़प उठे बाहर निकलने के लिए। पर अंतर्लीन व्यक्ति के लिए यह दुखदायी न रहा। कुछ लोग एकांत से ऊर्जा पाते हैं तो कुछ समूह से।

विचारों की इसी उधेड़ बुन के बीच मैं अपना मानस बना चुकी थी।

दर्शकों की तरफ हाथ हिलाकर उनको धन्यवाद् देती हुई मैदान से बाहर निकल गयी।