शौक़

शौक़ ने एक सपना बुना

था उसे हक़ीक़त होना

धरातल पर स्पर्धा की हुंकार

हुआ वास्तविकता से दो चार

मन मस्तिष्क पर सपना छाया

भीतर से साहस जुटाया

पुरजोर क़दम आगे बढ़ा

चाक मेहनत की जा चढ़ा

 तपता रहा निखरता रहा

अहसास अपूर्व था ख़ुशी अपार

तराश हुनर हक़ीक़त बना

शौक़ जब जूनून बना