Kabeer
by Hazari prasad dwivedi
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- Publisher: Rajkamal Prakashan
- Original Title: Kabeer
- ISBN: 978-81-267-1497-1
- Language: Hindi
दो टूक।शानदार । पाठक - रूप में भी बौना महसूस कर रही हू । "सुधीवृंद" "अनुसंधितसु"- ऐसा लग रहा है जैसे नया शब्द कोष हाथ लगा हो । "खेचरी मुद्रा " से योग की व्याख्या -नितांत भिन्न प्रकार की है । भाषा कहीं कहीं क्लिष्ट है" पुत्र -कलतर और वित का त्याग करना कृचछता है"।शब्दों का मयशोध विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है । यह पाठक की अज्ञता है अथवा लेखक का भाषायी नवाचार- " कबीरदास ने आत्मविचार को बहुमान दिया है"। कबीर की काव्यात्मकता, रवीन्द्र नाथ की रचनात्मकता व हज़ारी प्रसाद की स्पष्टता की अनूठी त्रिवेणी प्रतीत होती है।"भाषा कुछ कबीर के सामने लाचार सी नज़र आती है" तो दिवेदी जी का भी एकाधिकार नज़र आता है। "झुंड बाँधकर उत्सव हो सकते हैं, भजन नहीं " में दिवेदी जी ने खरी कही है।भारतीय संस्कृति की विशेषता का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि" .... भारतीय संस्कृति ने समस्त जातियों को उनकी सारी विशेषताओं समेत स्वीकार कर लिया। पर अब तक कोई ऐसा 'मज़हब' उसके द्वार पर नहीं आया था। वह उसको हज़म कर सकने की शक्ति नहीं रखता था।" साथ ही "एकरस" प्रेम की सुंदर व्याख्या की है। उत्कृष्ट पुस्तक । साधुवाद उन स्नेहिल साथियों का जिन्होंने इस पुस्तक का सुझाव दिया।