Mrityunjaya
by Shivaji Sawant , Translated by Om Shivraj
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- Publisher: Bharatiya Jnanpith
- Original Title: Mrityunjaya
- ISBN: 8126312777, 978-8126312771
- Language: Hindi
भाव व भाषा की उत्कृष्टता से नि:शब्द कर देने वाली कृति । नरेन्द्र कोहली कृत "महासमर" से तुलना बारम्बार अनायास ही हो जाती है। कभी-कभी तो उसकी प्रतिकृति ही प्रतीत होती है, जैसे उसी का कोई खंड है। "कुन्ती " कथा/खंड का प्रवाह निर्बाध है। लेखन पर दर्शन की छाप बहुत गहरी है, रह रह कर जीवन के सार स्वरूप पंक्तियाँ " मनुष्य भी इस राजहंस की तरह ही नहीं होता क्या ? उसको जिसकी आवश्यकता होती है, उसको ही ग्रहण करता है और शेष छोड़ देता है। ...."" मनुष्य का प्रेम धरती की तरह होता है। पहले एक दाना बोना पड़ता है। तभी धरती अनेक दानों से भरी हुई बालियाँ देती है।" "निर्मिति का आनन्द केवल कलाकार ही जान सकते हैं।...." जैसे मन की कह दी।सत्य ही है" सृजन का काल कला-जगत में हमेशा ही मन्त्रभारित रहता है।" कर्मठता को पुष्ट करते हुए" मैं तो तन मन से लड़नेवाला केवल एक असभ्य सैनिक हूँ।" यथार्थ की गहरी समझ-" क्योंकि कोई भी विधा हो, वह पौधे की तरह होती है।उसमें निष्ठा का खाद और मन की एकाग्रता का पानी जब पड़ता है, तभी वह बढ़ती है।" विधार्थी , शिक्षक सभी को इसका एक बार अवश्य अध्ययन करना चाहिए। गाहे- बेगाहे स्त्री की महत्ता का वर्णन मिलता है। यह इतना दुर्लभ है कि यह निश्चित तौर पर कह सकती हूँ कि पिछले २ वर्षों में मेरे द्वारा पढ़ी गई पुस्तकों में प्रथम बार है। संसार के सभी पराक्रम स्त्री की कोख से ही जन्म लेते हैं।...." " .........कोटि -कोटि दुखों को आकाश की तरह शांत रहकर चुपचाप सहन करने के लिए ही उसका जन्म होता है।" "..... वृद्ध खुरदरे हाथ...." दर्शाते हैं कि कृति मात्र कथा/ कल्पना नहीं वरन् जीवनानुभव का पुट भी है। कम ज्ञात " राजनीति" ..... के बारें में अकादमिक पुस्तकों से इतर साहित्यिक रूप से जानने को मिला।".....राजनीति तो सदा ही मरूस्थल- जैसी होती है। उसमें वृद्धों की भरती का अर्थ है प्रगति को कुन्ठित कर देना है।" "राजनीति का आधार भावुक मन की निष्कपट भूमि नहीं है। वह बुद्धि के व्यायाम पर चला करती है।" पुस्तक पढ़ते वक़्त मनन ज़्यादा व गति मंथर रही। "और राजा को कभी किसी की स्तुति नहीं करनी चाहिए......." कई पाठकों को अपने वरिष्ठ / अधिकारी की याद दिला देगा। कहना उचित ही होगा कि अनुवाद ने मूल लेखन की आत्मा को सहेज कर रखा है।