Volga se Ganga
by Rahul Sankritayayan
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- Publish date: 31 Dec 1899
- Publisher: Kitaab Mahal
- Original Title: Volga Se Ganga
- ISBN: 8122500870,978-8122500875
- Language: Hindi
अब तक जीवों में ही लिंग भेद देखा/सुना था। प्रथम बार प्रकृति के अन्य तत्वों में भी " अरण्यानी" शब्द द्वारा यह जानने को मिला।हिन्दी साहित्य को पढ़ते वक़्त इतना अक्षम कभी महसूस नहीं किया कि शब्दकोश की मदद ली जाए- कृचछता, पृथुल , श्रमधावन, निभृत ने जैसे हिन्दी शब्दकोश ख़रीदने हेतु बाध्य कर दिया। हालाँकि कथा-परिवेश अनुमान हेतु मदद प्रस्तुत करता है।६०००ई०पू० की कथा में तथाकथित मानव के पशु तुल्य अंतरंग/पारिवारिक संबंध हतप्रभ करने वाले हैं। उन्हें "जांगल मानव " उचित ही कहा गया है-"माँ के दो पति मौजूद थे..... बच्चों में से भी न जाने कितने पति की अवस्था तक पहुँच सकते थे।" "जांगल मानव" होने पर भी "झूठ अभी मानव के लिए अपरिचित और अत्यंत कठिन विधा थी।" प्रणय परिदृश्यों का वर्णन किसी चलचित्र के जीवंत दृश्यों को मात देने वाला है।आदिम जीवन, स्वच्छंद संबंध एवं स्त्री राज्य से धीरे-धीरे पुरूष राज्य की ओर अग्रसर होते समय का छोटी-छोटी कथाओं के माध्यम से सजीव चित्रण किया गया है।पुस्तक इतिहास प्रेमियों को पसंद आ सकती है। पहाड़ के जीवन का एकाधिक बार वर्णन एकरसी लगने लगती है, बार-बार ध्यान भटकता सा है।शब्दों की भिन्न भावअभिव्यक्ति "...... पीछे मुँह छिपा लिया। किन्तु छिपाते वक़्त मैंने आँखों के लिए रास्ता खोल रखा था। मैं देख रही थी, तू क्या करता है।" , और बेहतरीन भी " मैंने मानव बनने की नहीं , योग्य बनने की कोशिश की....।" शिक्षा में आज भी प्रासंगिक लगा जब सांकृतयायन लिखते हैं कि ".......रटने में ही चालीस- पैंतालीस की आयु बिता देते हैं।वह दूसरी कोई गम्भीर बात कहाँ से सोच निकालेंगे?" दर्शन का परिचय -"संसार वस्तुओं का समूह नहीं , बल्कि घटनाओं का प्रवाह है।" तरूण को उम्र के आधार पर तिरस्कृत न करने की गरज से-" तुम तरूण हो निस्सन्देह , किन्तु तरूणाई और गुण से बैर नहीं है।" नागदत्त व प्रभा बेहतरीन प्रतिनिधि कथाएँ हैं। अंतत:इतिहास अगर आपकी रूचि का विषय न रहा है तो पुस्तक भी अधिक रूचिकर न लगेगी।